
बिहार विधानसभा भवन के एक सौ वर्ष पूरे हो गए हैं। इस मौके पर आयोजित समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी शामिल हो रहे हैं। समारोह को लेकर विधानसभा के सदस्यों में खासा उत्साह देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित अन्य अतिथियों का स्वागत करते हुए बिहार विधानसभा के गौरवशाली इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं। हम सभी को नए भारत के निर्माण के लिए आगे बढ़ना है। आइए जानते हैं बिहार विधानसभा के 100 साल के गौरवशाली इतिहास के बारे में कुछ खास बातें-
बिहार विधानसभा भवन में पहली बैठक सात फरवरी 1921 को हुई थी। वर्तमान में 17 वीं विधानसभा का कार्यकाल चल रहा है। आजादी के पहले और बाद में यह भवन कई राजनीतिक बदलावों और उलटफेरों का गवाह बन चुका है। भवन ने कई मुख्यमंत्रियों और विधानसभा अध्यक्षों का कार्यकाल भी देखा है।
विधान मंडल के भवन को 1935 के अधिनियम के बाद दो हिस्सों में बांटा गया। पहले हिस्से में विधानसभा और दूसरे में विधान परिषद बनी। बिहार और उड़ीसा प्रांत को 1920 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद 07 फरवरी, 1921 को विधानसभा के नव निर्मित भवन में बैठक शुरू हुई।
-श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री थे। डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के मुख्यमंत्री काल में 18 सितम्बर 1947 को विधानसभा में जमींदारी उन्मूलन विधेयक पेश हुआ। उस समय समाज के अभिजात्य व जमींदार या जमींदारों के अधिसंख्य प्रतिनिधि ही सदन की शोभा बढ़ाते थे। 1950 में भूमि सुधार कानून पास हुआ। जमींदारी प्रथा समाप्त हुई और राज्य में सामाजिक परिवर्तन के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत हुई।
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