सत्ताधारी एनडीए खेमे में जातिगत जनगणना पर खींचतान तो लंबे समय से चल रही थी, लेकिन विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने ऐसा पांसा फेंका कि बात राहें अलग होने की अटकलों तक पहुंच गई। आरजेडी ने नीतीश कुमार से कहा है कि वह बीजेपी के खिलाफ जाकर भी जातिगत जनगणना करवाएं और यदि ऐसा करने से सरकार के सामने संकट आता है तो वह साथ देने को तैयार है। वहीं, जेडीयू ने भी आरजेडी के समर्थन का स्वागत किया है।
देश में ओबीसी की कितनी आबादी है, इसका सटीक आंकड़ा मौजूद नहीं है। जातिगत जनगणना की मांग कर रहीं पार्टियों का कहना है कि आबादी की गिनती के समय लोगों की जातियों को भी दर्ज किया जाए और ताकि आबादी में हिस्सेदारी के मुताबिक योजनाएं बनाईं जा सकें।
बिहार में बीजेपी अब तक इस मुद्दे पर अपना स्टैंड पूरी तरह साफ नहीं कर पाई है। ना तो वह इससे इनकार कर पा रही है और ना ही खुलकर समर्थन। नीतीश कुमार के नेतृत्व में तेजस्वी सहित 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जब इस मुद्दे को लेकर पीएम के पास गया था तो उसमें बीजेपी कोटे से मंत्री जनक राम भी मौजूद थे। लेकिन इस मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए नीतीश कुमार को अब भी बीजेपी की सहमति का इंतजार है।
पार्टी के बड़े नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और मौजूद डेप्युटी सीएम तारकिशोर प्रसाद जहां इसकी पैरवी कर चुके हैं तो बीजेपी के विधान पार्षद संजय पासवान और बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से इसे खारिज किया था। 2019 और 2020 में जातिगत जनगणना के प्रस्ताव पर बिहार विधानमंडल में बीजेपी ने समर्थन किया था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के रुख के बाद बिहार बीजेपी इस पर खुलकर कुछ बोलने से बच रही है।
बिहार में जेडीयू और आरजेडी दोनों धुर विरोधी दल जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एकमत हैं और दोनों ही दलों ने केंद्र सरकार से इसकी मांग करते हुए पीएम से मुलाकात की थी। लेकिन केंद्र की ओर से जातिगत जनगणना कराए जाने से इनकार के बाद बिहार सरकार ने अपने खर्च पर यह कराने का फैसला किया है।
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