जातिगत जनगणना के सवाल पर बिहार में एक दूसरे के धुर विरोधी पार्टियां एक मंच पर आ गई हैं। नीतीश की अगुवाई में दस दलों के प्रतिनिधिमंडल की पीएम से मुलाकात के पूर्व भाजपा नेता सुशील मोदी ने भी इस मांग के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता जताई। दरअसल बिहार में जाति जनगणना के बहाने सभी दल अलग-अलग सियासी दांव आजमा रहे हैं।
बीते डेढ़ दशक में राजद का आधार यादव और मुसलमानों तक सीमित रह गया है। राजद अब इसी बहाने ओबीसी में शामिल अन्य जातियों में अपना खोया आधार फिर से पाना चाहता है। यही कारण है कि राजद इस मुद्दे पर कोई मौका नहीं गंवाना चाहता। दूसरी ओर नीतीश राजद के इस सियासी दांव को समझ रहे हैं। वह नहीं चाहते कि सामाजिक न्याय के मुद्दे पर राजद को जदयू पर बढ़त मिले। यही कारण है कि जाति जनगणना के मुद्दे ने जब भी तूल पकड़ा, नीतीश ने उसे अपने हक में करने की कोशिश की। दो बार बिहार विधानसभा से इसके पक्ष में सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कराया।
भाजपा क्यों है समर्थन में
प्रतिनिधिमंडल में भाजपा नेता जनक राम भी शामिल थे। दरअसल भाजपा लंबे संघर्ष के बाद दलितों और अति पिछड़ी जातियों में पैठ बना पाई है। उसे पता है कि इस मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपनाने से उस पर फिर से अगड़ी जाति की पार्टी का ठप्पा लग जाएगा। यही कारण है कि भाजपा ने विधानसभा में इससे संबंधित प्रस्ताव का दोनों बार समर्थन किया।
राज्य में अगड़े महज प्रतीकात्मक
संख्याबल की दृष्टि से देखें तो बिहार में अगड़े वर्ग की उपस्थिति महज प्रतीकात्मक है। राज्य में ओबीसी की आबादी जहां 50 फीसदी से ज्यादा है, वहीं अगड़ों की आबादी 12 फीसदी से भी कम है। यही कारण है कि जाति जनगणना के सवाल पर जहां यूपी भाजपा के लिए ऊहापोह का कारण बनता है, वहीं बिहार में भाजपा के लिए यह मजबूरी है।
More Stories
बिहार मे एम एल सी चुनाव मे भा ज पा का जीतना हुआ तय
एमएलसी प्रत्याशी रईस खान पर जान लेवा हमला :सिवान
लालू यादव की जमानत के के लिए अदालत याचिका तैयार